Wednesday, September 13, 2017

A Satire :जागो सोने वालों, सुनो मेरी कहानी

      वह कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था.पूछा तो मंटो के टोबा टेक सिंह की तरह कुछ इस तरह बड़बड़ाया'ओपड़ी गुड़गुुड़दी एक्सवाईज़ेड की डेमोक्रेसी सीक्रेसी पालिसी आफ इंडिया ,दैट इज़ भारत' मेरी समझ में कुछ नहीं आया.मैंने फिर पूछा कि आप कौन? सीधे उत्तर न दे कर खुद उसने मुझसे पूछ लिया-

--------"लखनऊ के हो क्या ?"

       हामी भरने पर ,हंस कर अपना परिचय देते हुए बोला --

------" न मैं कोई डेरा वाला हूँ,न कोई योगा गुरू, न ही किसी आर्ट-वार्ट का मास्टर श्री श्री 1008 और न ही मैं उत्तर कोरिया वाले किम जोंग की जापान के ऊपर से गुजरी  मिसाईल  हूँ  ,इसलिये डरो नहीं."

                उसकी बक-बक सुनकर वह मुझे और भी जाना-पहचाना लगने लगा. लेकिन दीमाग पर जोर डालने के बावजूद मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था. मेेरेे सामने मुुरझाये चेहरे और लालटेन से जबड़े वाला  एक लस्टम -पस्टम सींकिया डान क्विगजोट टाइप व्यक्ति खड़ा था.उधर, किशोर कुमार का गाना मेेरेे कानों में बार-बार बज रहा था..

  " अजनबी तुम जाने -पहचाने से लगते हो....."

-----"खैर, इस समय कहाँ से आ रहे  हो?

------"पता नहीं कब से कोमा में था,आँखें खुलीं तो अपने को अस्पताल में पाया.वहाँ से चुपचाप भाग आया हूँ, डिस्चार्ज ही नहीं करते थे.कभी वेंटिलेटर पर रख देते थे,कभी डायलिसिस कर देते थे.पता नहीं क्या-कया और करने का इरादा रखते थे. मैंने सोचा पता नहीं कब अस्पताल के अॉक्सीज़न का स्टॉक जवाब दे दे और मेरा राम नाम सत्य है हो जाये,इससे पहले भाग लो ."

        उसको ठीक-ठीक पहचानने के प्रयास  में   मेरे सवाल और उसके जवाबों का सिलसिला जारी रहा.

----"जे.एन.यू में पढ़े हो?"

उसका इनकार में सिर हिला.

-----"पत्रकार हो क्या ?"

-----"नहीं तो  !"

-------"कांग्रेसी ,कम्युनिस्ट या राष्ट्र भक्त ?"

-------"नहीं जनाब नहीं । आप  क्यों जबरदस्ती

 मेरे ऊपर कोई लेबल  चस्पा करने पर तुलें हैं। कहीं आप तो टीवी चैनल वाले नहीं हैं ?मैं  तो एक आदमी हूँ ,बस आदमी, आम आदमी का लेबल मत लगा दीजिएगा."

          मैं अब उसे ठीक -ठीक पहचान चुका था . मैं लखनवी तहजीब भूल कर उसे तुम कह रहा था और वह मुझे लखनऊ का जान आप और जनाब की भूलभुलैयां में भटका हुआ था.

 -------"खैर,ये बताओ इतने  सालों तक कहाँ गायब रहे ?"

-------"ये एक लंबी कहानी है,उसे छोड़िये जनाब. बस समझ लीजिये कि पुनर्जन्म हुआ है और यमराज की आँखों में धूल झोंक कर जहन्नुम से भागा हुआ हूँ."

----------"चलो सड़क पार कर लेते हैं और सामने के रेस्तरां में कॉफ़ी पीते हुए गपशप का दौर आगे बढ़ाते हैं."

-----" तो हुजूर बुर्जुआ क्लास से ताल्लुक रखते हैं और कॉफ़ी पसंद करते हैं." 

----------" तुम कम्यूनिस्ट  ही लग रहे हो? आजकल तो उनके बुरे दिन आये हुए हैं. बंगाल से खदेड़े जा चुके हैं ,केरल में भी बस दिन गिने-चुने बचे हैं।इसलिये कम्युनिस्ट अब आदमी हो गये हैं और सहनशीलता ,उदारता ,अहिंसा की बातें करने लगे हैं".

--------"असल में मुझे खुद नहीं मालूम कि मैं क्या हूँ ?कभी मुझे सी.आई.ए. का एजेंट, कभी सोवियत संघ का दलाल, कभी देशभक्त तो कभी समाजवादी , कभी नक्सली और आजकल ...छोड़िये इसे."


                सड़क पार करना ,महाभारत का चक्रव्यूह तोड़ने से कम नथा. अभिमन्यु की तरह वीरगति को प्राप्त करने के पूरे-पूरे अवसर उपलब्ध थे. वाहन बुलेट ट्रेन की रफ्तार से जोरदार हार्न बजाते हुए  प्रदूषण अभिवृद्धि प्रतियोगिता में भाग लेते जान पड़ रहे थे.ऊपर से पूरी सड़क पर समस्त गऊ वंश पसरा हुआ विश्राम कर रहा था और स्वनामधन्य लठ्ठमार गऊ रक्षक उनकी सुरक्षा में तैनात थे. किसी तरह बचते-बचाते सड़क पार हुई और काफी की चुस्कियों के बीच हमारी बातचीत आगे बढ़ी.

         ठंडी सांस भरते हुए डान क्विगजोट (अब मैं उसे इसी नाम से पुकारूँगा) ने बताया कि उसे कुछ भी याद नहीं कि किस दुर्घटना का शिकार हो कर वह कोमा में चला गया था.अब कहाँ जाओगे पूछने पर बोला ,सोचता हूँ दिल्ली चला जाऊँ- ज्यादा दूर भी नहीं है और देश की राजधानी भी है.फिर सदियों से मेरे जैसे लुटे-पिटे बेगानों को शरण देने का उसका रिकार्ड भी बेदाग है.

----"कैसे जाओगे ?"

----"ट्रेन से चला जाऊँगा, मेरे पास पैसे हैं."

-----" पैसे कहाँ से आये ?"

-------"अभी कल ही एक बिल्डर का अस्पताल में हार्ट फेल हुआ था.वार्ड  बॉय और नर्सें घड़ी,मोबाइल और कीमती अंगूठियाँ लाश से उतार रही थीं,मौका पा कर पर्स मैंने उड़ा लिया.काफी मोटा आसामी था, अच्छी-खासी रकम मेरे हाथ आ गयी."

     आटो वाला थोड़े मोल भाव के बाद डेढ़गुना किराये और 100रु अतिरिक्त की प्रोत्साहन राशि के लालच में डान क्विगजोट को लेकर स्टेशन रवाना हो गया.

क्रमश: 

(डान क्विगजोट की रेल यात्रा -अगले पोस्ट में )




  

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