Friday, September 8, 2017

व्यंग्य- विनोद की चाशनी में डुबाकर परोसी गयीं कहानियाँ(पुरानी कहानियाँ नये अंदाज़ में) सीरीज़

4) मुल्ला नसरुद्दीन

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                 मुल्ला नसरुद्दीन कहानियों की दुनिया का एक ऐसा पात्र है,जो सूदखोरों ,जबरन कर वसूलने वालों तथा दुष्ट दरबारियों का कट्टर दुश्मन था. वह एक नेकदिल इन्सान था,जो जुल्म करनेवालों को अपनी बुद्धिमानी  से ऐसा सबक सिखाता था कि वे जिन्दगी -भर नहीं भूलते थे .गरीब लोगों के हक की लड़ाई लड़ने को वह हमेशा तैयार रहता था .
                 दस वर्षों तक तेहरान,बगदाद और दूसरे शहरों में भटकने के बाद मुल्ला नसरुद्दीन जब अपने मुल्क बुखारा लौटा तो वह फैली अव्यवस्था के कारण जालिमों से बदला लेने के लिए मैदान में कूद पड़ा .उसका एक मात्र साथी उसका गधा था. उसने निर्धन,अनाथ लोगों को आश्रय दिया तथा अमीरों,सरदारों की दौलत अपने बुद्धिबल से लूट कर गरीबों में बांट दी.
                यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि बुखारा में फैली अव्यवस्था से लड़ने में मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने साथी के रूप में एक गधे को चुना.बस यहीं हमारे कुछ मसीहा जैसे जय प्रकाश नारायण और अन्ना हजारे चूक कर गये.उन्होंने गधों को अपना साथी न चुन कर भयंकर भूल की और शातिर,चालाक, धूर्त लोगों को अपने मिशन में शामिल कर लिया.फलस्वरूप सत्ता परिवर्तन तो हो गया लेकिन व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो सका.
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                मुल्ला नसरुद्दीन का जिक्र आते ही मन मे एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है,जो इपने गधे को साथ लिए यहाँ-वहाँ घूमता रहता है और मसखरेपन की हरकतें करता रहता है,किन्तु उन हरकतों की गहराई मे जाने पर भेद खुलता है किउसने हंसी मजाक मे कितना बड़ा कारनामा कर डाला है.
               एक दिन मुल्ला अपने गधे के साथ कहीं जा रहे थे कि उन्होंने सड़क पर एक दुखी आदमी को देखा जो ऊपरवाले को अपने खोटे नसीब के लिए कोस रहा था. मुल्ला ने उसके करीब जा कर पूछा -"क्यों भाई ,इतने दुखी क्यों हो?"
वह आदमी मुल्ला को अपना फटा -पुराना झोला दिखाते हुए बोला -"इस भरी दुनिया में मेरे पास इतना कुछ भी नही है जो मेरे इस फटे-पुराने झोले में समा जाये."
----"बहुत बुरी बात है-",मुल्ला बोला और उस आदमी के हाथ से झोला छीन कर अपने गधे पर सरपट भाग लिया."
             अपना एक मात्र माल-असबाब लूट लिए जाने पर वह आदमी रो पड़ा.वह अब पहले से ज्यादा दुखी था.वह अब क्या करे,उसकी समझ में नही आया.फिर भी वह उसी रास्ते पर आगे बढ़ता रहा.दूसरी ओर ,मुल्ला उसका झोला ले कर भागता हुआ सड़क के एक मोड़ पर जा कर रुक गया.फिर मुल्ला ने वह झोला  सड़क के ठीक बीचों-बीच रख दिया ताकि पीछे आ रहे उस आदमी को उसका झोला आसानी से मिल जाये.दुखी आदमी ने जब सड़क के मोड़ पर अपना झोला पड़ा पाया तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा. वह खुशी से रो पड़ा और झोले को अपने सीने से लगाते हुए बोला-"मैं बड़ा खुशनसीब हूँ, मेरा छीना हुआ झोला मुझे वापस  मिल गया."
झाड़ियों मे अपने गधे के साथ छुपा मुल्ला यह नज़ारा देख रहा था.वह हंसते हुए खुद से बोला "-ये भी किसी को खुश करने का क्या शानदार उपाय है़."

पुछल्ला
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               हमारी आमदनी पर झपट्टा मार कर सरकारें बड़ी मासूमियत से फरमाती हैं:-
"हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी ही तो छीन ली है़
डाका तो नहीं डाला ,चोरी तो नही की है़"
               ज्यादा शोर मचने पर हमे कुछ छूट  दे कर निहाल कर देती हैं.हम भी खुश हो कर उछलने लगते हैं-"हम बड़े खुशनसीब हैं,हमारा छीना हुआ झोला वापस मिल गया."
               


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