3) अढ़ाई दिन की बादशाहत
बक्सर के मैदान में एक बार हुमायूँ और शेरशाह सूरी का घमासान युद्ध चल रहा था. युद्ध में हुमायूँ बुरी तरह हार गया और दुश्मन की सेना ने उसे तीन ओर से घेर लिया.हुमायूँ अपनी जान बचाने के लिये युद्ध के मैदान से भाग कर गंगा के किनारे जा पहुँचा.उसने अपने घोड़े को गंगा के अन्दर उतारने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली. हुमायूँ को डर था कि यदि शेरशाह सूरी की सेना वहाँ पहुँच गयी तो उसकी जान नहीं बचेगी.
उसी समय निजाम नाम का एक भिश्ती अपनी मशक में पानी भरने के लिये गंगा के किनारे आया. वह बहुत अच्छा तैराक भी था. हुमायूँ ने उसे अपना परिचय दिया और सहायता मांगी.आज भी सभी बादशाह अपनी हुकूमत बचाने के लिये किसी से भी हाथ मिला सकते हैं,कहीं से भी मदद लेने को तैयार रहते हैं.तब से अब तक कितनी बरसातें बीत गयीं लेकिन बादशाहों की ये फितरत अब भी कायम है.चाहे वह बलात्कारी हों या आतंकवादी बस उन्हें मशक से गंगा पार लगाना आना चाहिये,बादशाहों के सर्वाधिक कृपा पात्र भी वेे ही होते हैं.
निजाम हुमायूँ को मशक पर लिटा कर गंगा पार करा सकता था. किन्तु हुमायूँ पहले तो मशक पर गंगा पार करना ही नहीं चाहते थेे ,लेकिन बाद में गंगा पार करने का और कोई रास्ता न देख कर उन्हें भिश्ती की बात माननी पड़ी.निजाम ने कुछ ही देर में हुमायूँ को मशक पर लिटाया और तैरते हुए गंगा पार करा दी.इस तरह हुमायूँ की जान और बादशाहत दोनों बच पायीं.हुमायूँ ने निजाम को बहुत सारा ईनाम देने का वचन दिया.निजाम ने कहा--' जहाँपनाह,यदिआप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो अढ़ाई दिन की बादशाहत दे दीजिये.' हुमायूँ अपनी जान बच जाने पर बहुत खुश था,उसने भिश्ती की बात मान ली और आगरा पहुँच कर उसे अढ़ाई दिन की बादशाहत देने का ऐलान कर दिया.
शाही हज्जाम से निजाम के बाल कटवाये गये,शाही पोशाकें सिलवायी गयीं और उसे शाही तख्त पर बैठा दिया गया.हुमायूँ ने दरबारियों से कहा-'आज से ये बादशाह हैं और इन्हीं के हुक्म का पालन किया जाये.' तख्तनशीन होते ही निजाम जो अब तक भिश्ती-सेवक था ,बादशाह बन गया.वह केवल बादशाह न था,अब वहअपने आप को कुशल प्रशासक, अर्थशास्त्री,प्रखर विद्वान, राजनयिक और भी न जाने क्या -क्या समझने लगा.
जब हुमायूँ चला गया तो निजाम ने वजीर से टकसाल जाने की इच्छा जाहिर की। वजीर बादशाह को टकसाल ले गया जहां सिक्के ढाले जाते थे.भिश्ती निजाम बादशाह ने तुरंत सोने, चाँदी और तांबे से बनने वाले सिक्कों पर रोक लगा दी और चमड़े के सिक्के जारी किए जाने का फरमान जारी कर दिया.अब क्या था,टकसाल में दिन-रात चमड़े के सिक्के बनाने का काम शुरू हो गया. बादशाह ने खजांची को हुक्म दिया कि पुराने सभी सिक्के खजाने में जमा करा लिए जायें. अब से सभी लेन-देन सिर्फ़ चमड़े के सिक्कों में करना अनिवार्य हो गया।बड़े-बड़े सेठों को चमड़े के सिक्के देकर,उनके सोने -चांदी के सिक्के जब्त कर लिए गये। सिर्फ अढ़ाई दिनों में पूरे राज्य में चमड़े के सिक्के फैल गये.
पुछल्ला:
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यदि बादशाह चाहे तो पल भर में जमी-जमाई व्यवस्था को तहस -नहस कर सकता है. अढ़ाई दिन बीतते ही हुमायूँ लौट आया और निजाम ने शाही पोशाक उतार दी.फिर वह अपनी पुरानी पोशाक में मशक लेकर यह गीत गाता हुआ अपने रास्ते चल दिया :
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन मे समाई
काहे को अढाई दिन की दुनिया बनाई
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