व्यंग्य-विनोद की चाशनी में डुबाकर परोसी गयीं पुरानी कहानियाँ (पुरानी कहानियाँ नये अंदाज़ में) सीरीज़
एक घने जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उसमें एक कौआ रहता था। कालिया कौआ बेहद चतुर था। एक दिन उड़ान भरते भरते वह पास की एक बस्ती के समीप जा पहुंचा। उसको जोर से भूख लगी थी। उसने देखा बस्ती के बाहर एक पंडाल में तरह तरह का खाना रखा है। लोग खा कर अपनी प्लेटें फेंक रहे हैं। पूड़ी-कचोड़ी रसगुल्ला लड्डू-पुलाव के साथ ठंडे पेय की बोतलें देख कर उसके मुंह में पानी आ गया। एक छत की मुंडेर पर वह भी जा बैठा कि शायद कोई उपाय मिल जाए। तभी पिछवाडे रखी हुइ प्लेटों के ढेर को देख कर वह खुशी से झूम उठा। उसने भर पेट खाना खाया। सोचने लगा कि आदमी कितना खाना फेंक देते हैं .अगर यही भूखे प्राणियों को मिल जाए तो उनका पेट भर जाए। कल से अपने दोस्तों के संग यहीं दावत होगी ,वाह कितना मजा आयेगा !
कालिया कौए ने इतना अधिक खा लिया था कि वह उड़ भी नहीं पा रहा था। उसे जोरों से अब प्यास भी लगी थी.उसने इधर-उधर देखा पर कहीं पानी नजर नहीं आया। उसने उड़ान भरी, एक हैंडपंप दिखाई दिया। नीचे उतरा पर वहां एक बूंद पानी भी नहीं, कुछ दूरी पर एक नल देख कर वहां जा पहुंचा। पर बार बार चोंच मारने पर भी पानी नहीं निकला। कालिया की हालत प्यास के मारे बुरी होने लगी। एक बार फिर वह उसी शादी के पंडाल पर जा पहुंचा। आसपास देखा तो उसे एक पानी की बोतल दिखाई दी। उसमें जरा सा ही पानी था। कैसे पानी पिया जाए, उपाय सोचने लगा .कालिया को अपनी चतुराई पर बेहद घमंड था किन्तु उसे बार-बार पीछे मुड़ कर देखने की बुरी आदत थी.वह बचपन से सुनता आ रहा था :-
एक कौआ प्यासा था
घड़े में थोड़ा पानी था
कौआ लाया कंकर
पानी आया ऊपर
कौए ने पिया पानी
कैसी कही कहानी
पानी पीने के लिये समयानुकूल नयी तरकीब खोजने के बजाय वह अपने दादा-परदादाओं की कहानी को याद कर कंकर -पत्थर ढूँढ़ने लगा. लेकिन वहाँ पानी घड़े में नहीं था.छोटे मुँह की बोतल में कंकर -पत्थर का कोई उपयोग न था.वहाँ पर ठंडा पेय और स्ट्रा भी बिखरे पड़े थे जिनसे प्यास बुझायी जा सकती थी.
प्यासा कालिया गिरता -पड़ता किसी तरह अपने घर विशाल बरगद के पेड़ पर साथी कौओं के पास लौट आया.तुरन्त देख-भाल कर कालिया को सँभाल लिया गया.फिर एक बूढे कौए ने कहा (जिसकी अब कोई नहीं सुनता था), "तुम तो आज के आधुनिक कौए हो, मटके में कंकड़ डाल कर पानी पीने का विचार तो बहुत पुराना है। तुम तो नए जमाने के हो। मेरे बाद में तुम ही सरदार बनोगे। पीछे मुड़ - मुड़ कर देखना बंद करो ."कालिया यह सुनकर खुशी से झूम उठा।
पुछल्ला :
"बार-बार पीछे मुड़ के देखने वाले दौड़ने में रफ्तार खो देते हैं.यह बुढ़ापे की निशानी भी है.हमारा मुल्क भी काफी उम्रदार है.यदि मुल्क को तेज रफ्तार पकड़नी है तो उसे इस कमजोरी से उबरना ही होगा."
दुनिया के साथ जो बदलता जाये
जो इसके ढाँचे में ही ढलता जाये
दुनिया उसीकी है जो चलता जाये
मुड़ मुड़ के न देख ...
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